Sunday 9 March 2014

ब्लॉग

हिन्दी का साहित्य यहॉ है  सभी  विधा  से सजा है ब्लॉग
कथा-गीत है नाटक कविता सबको लेकर चलता ब्लॉग।

वेद-पुराण-उपनिषद भी हैं अनुपम - पोथी-घर  है ब्लॉग
जीवन  का  हर  रँग भरा है ज्ञान और विज्ञान है ब्लॉग ।

लोक - सभा है राज्य - सभा है सबकी बातें करता ब्लॉग
इसके भीतर भी सब कुछ है सबका समाधान है ब्लॉग ।

विधि की रचना में षड्-रस है पर दस-रस से सना है ब्लॉग
जिस  रस का आस्वादन चाहें तत्पर रहता हिन्दी ब्लॉग ।

यह ही गुरु है यही डाकिया मन का मीत  है  हिन्दी  ब्लॉग
यह ही मेरा खोया बचपन गॉव  का  घर  है हिन्दी ब्लॉग ।

यहीं केजरीवाल और मोदी हास्य-व्यंग्य से भरा है ब्लॉग
यहीं हैं अन्ना- रामदेव  हैं सबका अपना - अपना ब्लॉग ।

शकुन्तला शर्मा
288/7 मैत्रीकुँज, भिलाई- 490006
जिला दुर्ग [छ. ग.]
ब्लॉग-shaakuntalam.blogspot.in
ई-मेल-mailtoshakun@gmail.com  
      

Monday 7 October 2013

सूक्त - 191


[ऋषि - संवनन । देवता -1 अग्नि , 2-4 संज्ञान । छन्द- अनुष्टुप , 3- त्रिष्टुप । ]

10549 ." संसमिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ ।
इळस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर ॥1॥"

"हे सुखदाता अग्निदेव भू को आलोक प्रदान करें ।
हो सभी तत्व में विद्यमान वैभव-ऐश्वर्य प्रदान करें ॥1॥

10550 . सङ्गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ॥2॥

संग-संग ही चलो परस्पर स्नेह-पूर्ण व्यवहार करो ।
ज्ञानार्जन से बढो निरंतर वसुधा का हित स्वीकार करो ॥2॥

10551. समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् ।
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥3॥

सबका हित हो ध्येय तुम्हारा तुम सबका चिन्तन हो एक ।
मन-मति एक समान सभी का चितन-मनन सदा हो नेक ॥3॥

10552. समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥4॥

भाव-भूमि निर्मल देता हूँ संकल्प -सोच हो एक -समान ।
संग-संग तुम चलो निरंतर पूर्ण -काम हो बनो महान ॥4॥ "

॥ इति दशमं मण्डलं समाप्तम्  ॥

॥  इति ऋग्वेदसंहिता समाप्ता  ॥

शकुन्तला शर्मा , भिलाई  [ छ. ग. ]   

Monday 12 August 2013

करगा

करगा - [लघु-कथा संग्रह ] कथा-कार - श्री मती शकुन्तला शर्मा

समीक्षक - श्री रामनाथ साहू

छत्तीसगढी - महतारी ला धनी - मानी बनाए के उजोग मा कतेक न कतेक वोकर सेवक मन लगे हावैं । वोमन साहित्य के जम्मो विधा म अपन लेखनी ला चलावत हावैं । एकरे गुरतुर फल देखे बर मिलत हे कि आज छत्तीसगढी - भाखा म साहित्य - लेखन के जम्मो विधा म , एक ले आगर एक कृति - मन छपत जात हावैं , फेर आज के जुग हर " स्मार्ट - जुग " ए , जतका छोटे मा परफॉरमेंस मिल जावय , वोतके बढिया लागथे । जादा पढे बर नई परय फेर मजा ओतके आ जाथे । एकरे सेती आज, साहित्य मा 'हाइकू' - 'लघु- कथा' के चलन हर बढत जात हावय ।

वरिष्ठ साहित्यकार , शिक्षा-विद  अऊ समीक्षक डा. सत्यभामा ऑडिल हर "करगा " के आमुख म कहे हावय -  "शकुन्तला शर्मा के नाव हर सरलग लिखइया मन के पंक्ति म , सम्मान के साथ रखे जाथे । शकुन्तला पहिली कविता के क्षेत्र म नाव जगाइस , पीछू संस्कृत कविता के अनुवाद के रूप म नाव कमाइस , फेर किस्सा - कहिनी के क्षेत्र म घलो आगे बढ गे । ऊँकर लेखन हर पोठ होवत जात हे अऊ बिसय के घलो विस्तार होवत जात हे । "छत्तीसगढ के कोठी ल भरत हे शकुन हर ।"   

करगा के भूमिका ल डा. विनय कुमार पाठक हर लिखे हावैं । सोलह पेज के भूमिका मा हर कहानी के  ऊपर चर्चा होय हावय । पाठक जी मन अपन भूमिका मा कहत हें कि - " करगा - लघु - कथा हर विकलॉग - विमर्श के ओलवार  धरे पहिली कथा- संग्रह ए । " घी गँवॉगे पिसान म " शीर्षक कहानी हर , विकलॉग - विमर्श के आदर्श कहानी ए - जेमा एक झन इंजीनियर हर अ‍ॅधरी कइना संग , बिहाव करके बहुत खुश हावै , काबर कि वोकर घरवाली हर बहुत बडे गायिका ए , जेला सरी दुनियॉ जानथे । " बिछल परे तव हर गंगा " - कहानी म एक झन खोरी इंजीनियर नोनी हर , अपन सँगवारी संग बिहाव करके , खुशी - खुशी जियत हे । " खोरवा " कहानी मा , एक झन खोरवा के समर्पित साधना के वर्णन हावै । वोहर खोरवा हो के घलाव , केदारनाथ - धाम तक पहुँच गे , अतके नहीं वोहर , लेखिका ल किस्सा - कहानी सुनावत - सुनावत केदारनाथ - मन्दिर मेर कब अमरा दिस तेकर पता नइ चलिस । लेखिका ल अइसे लागे लागिस , के एही हर बबा - केदारनाथ तो नोहय ?"   

"करगा "  हर छत्तीसगढ के समर्थ लेखिका शकुन्तला शर्मा के जीवन के हर रंग मा रंगे एक सौ एक लघु - कथा के संग्रह ए । जइसन कि शीर्षक हर बतावत हे , ए संग्रह के बहुत अकन कहानी मन , हमर समाज के भ्रष्टाचरण , कायरता के जबर्दस्त - पोठ-लगहा पडताल करत हावैं । कथा- कार हर ये सबो अवॉछनीय करगा - मन ला ललकारत हावै, लाठी धर - के ऊँकर पीछू - पीछू भागत हावै , तेहर बड - सुघ्घर लागथे । पाठक के घलाव , मुठा बँधा जाथे अऊ वोहू हर , लाठी धर के , दॉत - पीसत- पीसत , लेखिका के संगे - संग , दौंडे लागथे । रस -विभोर हो जाथे ।

" गोल्लर " कहानी म गोल्लर मा लगाम लगाए के हिम्मत कहूँ म नइये । आज अइसने " गोल्लर " मन तसमई खावत हावैं आऊ सिधवा मनखे हर मही बर तरसत हावै । ए संग्रह मा , देश के समाज के , जौन भी विद्रूपता हावय , तौन मन अपन , समाधान के अगोरा म , पाठक के आघू म आ के ठाढ हो जाथे आऊ पाठक हर , यथार्थ के धरातल म ओकर समाधान पाए बर अकुला जाथे । " जागे बर लागही " , " जयचन्द ", " करिया - पोत " कहानी मन के तेवर अइसने हे । सुख - लगहा बात ए हे के , छत्तीसगढी लोकोक्ति आऊ हाना मन ला , शीर्षक बना के लिखे कहानी मन मा , पूरा के पूरा छत्तीसगढी संस्कृति आऊ जीवन - दर्शन हर " ननद - भौजाई" कस जुगल-बन्दी करत दिखथे । " घी गँवॉगे पिसान म " के तरज म ये पूरा किताब ल , पढे के आऊ गुने के जरूरत आज  सबो झन ला हावय ।

" करगा" हर  वैभव - प्रकाशन , रायपुर [ छत्तीसगढ ] म छपे हावय । दू सौ तीन पेज के किताब ए अऊ एकर मूल्य हे - 150 .00 रुपिया ।           

 

Tuesday 2 April 2013

  
    


   

                                                                               
                                                                               
                                                                             

Sunday 31 March 2013

छत्तीसगढ के लोग

                                            
सरल  सहज हैं  संस्कारी हैं  छत्तीसगढ़ के लोग  संकोची भोले  अल्हड़  हैं छत्तीसगढ़  के लोग
बाहर से जो पहुना आता मान बहुत देते हैं  सबको कुटुम मान कर चलते  छत्तीसगढ़ के लोग।
 भले ही कोई करे उपेक्छा लडते नहीं किसी से वे जान बूझ कर चुप रहते हैं छत्तीसगढ़ के लोग
नर हो  चाहे  नारी  डटकर  मेहनत  वे  करते  हैं  पुरुषार्थी  हैं  कर्मवीर  हैं  छत्तीसगढ़  के लोग।
मेहनत करता है किसान जो भरता सबका पेट भुइयाँ के भगवान हैं  भैया छत्तीसगढ़ के  लोग
यहाँ की माटी मम्हाती है देवदारु चन्दन जैसी शकुन यहीं बस जा अच्छे हैं छत्तीसगढ़ के लोग

                                                                                   शकुन्तला शर्मा
                                                                                  भिलाई[ छ ग ] .  




                              तुम मानो या न मानो

जिसकी लाठी भैस उसी की तुम मानो या न मानो नारी अब भी दीन  हीन हे  तुम  मानो  या न मानो
उसे कभी विश्राम नहीं है तीज तिहार हो या इतवार हाथ बताता नहीं  है कोई  तुम  मानो या न  मानो .

इन्साफ नहीं होता है दफ्तर में भी उसके साथ कभी ज्यादा काम दिया जाता है तुम मानो या न मानो
कोई नहीं समझता उसको कहने को सब अपने हैं नारी भी नारी की दुश्मन है  तुम  मानो या न मानो .

                      'शकुन' कोई तरकीब बता वह भी जीवन सुख से जी ले
                      जीवन यह  अनमोल बहुत है तुम मानो या  न  मानो .